Maa Lakshmi Chalisa – श्री लक्ष्मी चालीसा पाठ
श्री लक्ष्मी चालीसा: धन, वैभव और समृद्धि की देवी की स्तुति
श्री लक्ष्मी चालीसा हिन्दू धर्म में माता लक्ष्मी को समर्पित एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्तोत्र है। माता लक्ष्मी को धन, सम्पदा, समृद्धि और सौभाग्य की देवी माना जाता है। श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने से भक्तों पर माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और उनके जीवन में धन-धान्य की कमी नहीं होती।
श्री लक्ष्मी चालीसा का महत्व:
धन और समृद्धि: यह चालीसा धन, वैभव और समृद्धि की प्राप्ति में सहायक है।
कर्ज मुक्ति: ऐसा माना जाता है कि नियमित पाठ से कर्ज से मुक्ति मिलती है।
सुख और शांति: लक्ष्मी जी की कृपा से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
व्यापार में वृद्धि: व्यापार और व्यवसाय में सफलता के लिए भी इस चालीसा का पाठ लाभकारी है।
श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ कैसे करें:
शुद्धता: स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
समय: प्रातः काल या संध्या काल में पाठ करना उत्तम माना जाता है।
स्थान: शांत और पवित्र स्थान पर बैठकर पाठ करें।
दीपक और धूप: माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक और धूप जलाएं।
एकाग्र मन: एकाग्र मन से पाठ करें और माता लक्ष्मी का ध्यान करें।
नियमित पाठ: नियमित रूप से पाठ करने से विशेष फल मिलता है।
श्री लक्ष्मी चालीसा के कुछ चुनिंदा चौपाई:
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध करि, पुरवहु मेरी आस॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही।
ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोही॥
Maa Lakshmi Chalisa – (श्री लक्ष्मी चालीसा पाठ)
श्री लक्ष्मी चालीसा
॥ दोहा ॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥
सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार।
ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥1॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥
॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
Maa Lakshmi Chalisa Lyrics in English/Hinglish
॥ दोहा ॥
Maatu Lakshmi kari kripa karo hriday mein vaas.
Manokamna siddh kar purvahu meri aas.
Sindhu suta Vishnupriye nat shir barambar.
Riddhi siddhi mangalprade nat shir barambar.
॥ चौपाई ॥
Tum saman nahin koi upkari. Sab vidhi purvahu aas hamari.
Jai jai jagat janani jagdamba sabki tum hi ho avalamba. (1)
Tum hi ho sab ghat ghat vasi. Vinati yahi hamari khasi.
Jagjanani jai Sindhu kumari. Deenan ki tum ho hitkari. (2)
Vinavon nitya tumhin Maharani. Kripa karau jag janani Bhavani.
Kehi vidhi stuti karon tihari. Sudhi lijai apradh bisari. (3)
Kripa drishti chitavvo mam ori. Jagjanani vinati sun mori.
Gyan buddhi jai sukh ki data. Sankat haro hamari mata. (4)
Kshirsindhu jab Vishnu mathayo. Chaudah ratna sindhu mein payo.
Chaudah ratna mein tum sukh rasi. Seva kiyo Prabhu bani dasi. (5)
Jab jab janm jahan Prabhu linha. Rup badal tahan seva kinha.
Svayam Vishnu jab nar tanu dhara. Linheu Avadhpuri avatara. (6)
Tab tum pragat Janakpur mahin. Seva kiyo hriday pulkahin.
Apnaya tohi antaryami. Vishwa vidit tribhuvan ki swami. (7)
Tum sam prabal shakti nahin aani. Kahan lau mahima kahon bakhani.
Man kram vachan karai sevakai. Man ichchhit vanchhit phal pai. (8)
Taji chhal kapat aur chaturai. Pujhin vividh bhanti manlai.
Aur haal main kahon bujhai. Jo yah path karai man lai. (9)
Tako koi kasht noi. Man ichchhit pavai phal soi.
Trahi trahi jai dukh nivarini. Trividh tap bhav bandhan harini. (10)
Jo chalisa padhe padhave. Dhyan lagakar sune sunave.
Takau koi na rog satave. Putra adi dhan sampatti pave. (11)
Putrahin aru sampati hina. Andh badhir kodhi ati dina.
Vipra bolay kai path karave. Shanka dil mein kabhi na laave. (12)
Path karave din chalisa. Ta par kripa karain Gaurisa.
Sukh sampatti bahut si pave. Kami nahin kahu ki aave. (13)
Barah maas karai jo puja. Tehi sam dhanya aur nahin duja.
Pratidin path karai man mahi. Un sam koi jag mein kahun nahin. (14)
Bahuvidhi kya main karon badai. Ley pariksha dhyan lagai.
Kari vishwas karai vrat nema. Hoy siddh upjai ur prema. (15)
Jai jai jai Lakshmi Bhavani. Sab mein vyapit ho gun khani.
Tumharo tej prabal jag mahin. Tum sam kou dayalu kahun nahin. (16)
Mohi anath ki sudhi ab lijai. Sankat kati bhakti mohi dijai.
Bhul chuk kari kshama hamari. Darshan dajai dasha nihari. (17)
Bin darshan vyakul adhikari. Tumhi achat dukh sahte bhari.
Nahin mohin gyan buddhi hai tan mein. Sab janat ho apne man mein. (18)
Rup chaturbhuj karke dharan. Kasht mor ab karahu nivaran.
Kehi prakar main karon badai. Gyan buddhi mohi nahin adhikayi. (19)
॥ दोहा ॥
Trahi trahi dukh harini, haro vegi sab tras.
Jayati jayati jai Lakshmi, karo shatru ko nash.
Ramdas dhari dhyan nit, vinay karat kar jor.
Matu Lakshmi das par, karahu daya ki kor.
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